1 . अंतःस्त्रावी ग्रंथियां और हार्मोन

अंतःस्रावी ग्रंथियों में नलिकाएं नहीं होती हैं अतः वे नलिकाविहीन ग्रंथियां कहलाती हैं। इनके स्राव हार्मोन कहलाते हैं। हार्मोन की चिरसम्मत परिभाषा के अनुसार ‘हार्मोन अंतःस्रावी ग्रंथियों द्वारा स्रवित रक्त में मुक्त किए जाने वाले रसायन हैं, जो दूरस्थ लक्ष्य अंग तक पहुँचाए जाते हैं।’ परंतु इस परिभाषा को अब रूपांतरित किया गया है जिसके अनुसार ‘हार्मोन सूक्ष्म मात्रा में उत्पन्न होने वाले अपोषक रसायन हैं जो अंतरकोशिकीय संदेशवाहक के रूप में कार्य करते हैं’ इस नई परिभाषा के अंतर्गत सुनियोजित अंतःस्रावी ग्रंथियों से स्रावित हार्मोन के अतिरिक्त कई नये अणु भी सम्मिलित हो जाते हैं। अकशेरुकियों में कम हार्मोन के साथ एक सरल अंतःस्रावी तंत्र होता है जबकि कशेरूकियों में कई रसायन हार्मोन की तरह कार्य कर उनमें समन्वय स्थापित करते हैं। यहाँ मानव अंतःस्रावी तंत्र का वर्णन किया गया है। मानव अंतःस्रावी तंत्र

अंतःस्रावी ग्रंथियां और शरीर के विभिन्न भागों में स्थित हार्मोन स्रवित करने वाले ऊतक/कोशिकाएं मिलकर अंतःस्रावी तंत्र का निर्माण करते हैं। पीयूष ग्रंथि, पिनियल ग्रंथि, थाइरॉयड, एड्रीनल, अग्नाशय, पैराथायरॉइड, थाइमस और जनन ग्रंथियां (नर में वृषण और मादा में अंडाशय) हमारे शरीर के सुनियोजित अंतःस्रावी अंग हैं (चित्र 22.1)। इनके अतिरिक्त कुछ अन्य अंग जैसे कि जठर-आंत्रीय मार्ग, यकृत, वृक्क, हृदय आदि भी हार्मोन का उत्पादन करते हैं। मानव शरीर की सभी प्रमुख अंतःस्रावी ग्रंथियों तथा हाइपोथैलेमस की संरचना और उनके कार्य का संक्षिप्त विवरण अगले भाग में दिया गया है।

2 . हाइपोथैलेमस

जैसा कि आप जानते हैं कि हाइपोथैलेमस, डाइनसिफेलॉन (अग्रमस्तिष्क पश्च) का आधार भाग है और यह शरीर के विविध प्रकार के कार्यों का नियंत्रण करता है। इसमें हार्मोन का उत्पादन करने वाली कई चित्र 22.1 अंतःस्रावी ग्रंथियों की स्थिति तंत्रिकास्रावी कोशिकाएं होती हैं जिन्हें न्यूक्ली कहते हैं। ये हार्मोन पीयूष ग्रंथि से स्रवित होने वाले हार्मोन के संश्लेषण और स्राव का नियंत्रण करते हैं। हाइपोथैलेमस से स्रावित होने वाले हार्मोन दो प्रकार के होते हैं-                   

मोचक हार्मोन (जो पीयूष ग्रंथि से हार्मोन से स्राव को प्रेरित करते हैं) और निरोधी हार्मोन (जो पीयूष ग्रंथि से हार्मोन को रोकते हैं)। उदाहरणार्थ: हाइपोथैलेमस से निकलने वाला गोनेडोट्रोफिन मुक्तकारी हार्मोन के स्राव पीयूष ग्रंथि में गोनेडोट्रोफिन हार्मोन के संश्लेषण एवं स्राव को प्रेरित करता है। वहीं दूसरी ओर हाइपोथैलेमस से ही स्रवित सोमेटोस्टेटिन हार्मोन, पीयूष ग्रंथि से वृद्धि हार्मोन के स्राव का रोधक है। ये हार्मोन हाइपोथैलेमस की तंत्रिकोशिकाओं से प्रारंभ होकर, तंत्रिकाक्ष होते हुए तंत्रिका सिरों पर मुक्त कर दिए जाते हैं। ये हार्मोन निवाहिका परिवहन तंत्र द्वारा पीयूष ग्रंथि तक पहुंचते हैं और अग्र पीयूष ग्रंथि के कार्यों का नियमन करते हैं। पश्च पीयूष ग्रंथि का तंत्रिकीय नियमन सीधे हाइपोथैलेमस के अधीन होता है ।

3.पीयूष ग्रंथि

पीयूष ग्रंथि एक सेला टर्सिका नामक अस्थिल गुहा में स्थित होती है और एक वृंत द्वारा हाइपोथैलेमस से जुड़ी होती है । आंतरिकी के अनुसार पीयूष ग्रंथि एडिनोहाइपोफाइसिस और न्यूरोहाइपोफाइसिस नामक दो भागों में विभाजित होती है। एडिनोहाइपोफाईसिस दो भागों का बना होता है पार्स डिस्टेलिस और पार्स इंटरमीडिया। पार्स डिस्टेलिस को साधारणतया अग्र पीयूष ग्रंथि कहते हैं, जिससे वृद्धि हार्मोन या सोमेटोट्रोपिन (GH), प्रोलैक्टिन (PRL) या मेमोट्रोपिन, थाइरॉइड प्रेरक हार्मोन (TSH) एड्रिनोकार्टिकोट्रॉफिक हार्मोन (ACTH) या कॉर्टिकोट्रोफिन, ल्यूटीनाइजिंग हार्मोन (LH) और पुटिका प्रेरक हार्मोन का स्राव करता है। पार्स इंटरमीडिया एक मात्र हार्मोन लेनोसाइट प्रेरक हार्मोन (MSH) या मेलेनोट्रोफिन का स्राव करता है। यद्यपि मानव में पार्स इंटरमीडिया (मध्यपिंड) पार्स डिस्टेलिस (दूरस्थ पिंड) में लगभग जुड़ा होता है।

न्यूरोहाइपोफाइसिस (पार्स नर्वोसा) या पश्च पीयूष ग्रंथि, यह हाइपोथैलेमस द्वारा उत्पादित किए जाने वाले हार्मोन ऑक्सीटॉसिन और वेसोप्रेसिन का संग्रह और स्राव करती है। ये हार्मोन वास्तव में हाइपोथैलेमस द्वारा संश्लेषित होते हैं और तंत्रिकाक्ष

होते हुए पश्च पीयूष ग्रंथि में पहुँचा दिए जाते हैं।

वृद्धिकारी हार्मोन (GH) के अति स्राव से शरीर की असामान्य वृद्धि होती है जिसे जाइगेंटिज्म (अतिकायकता) कहते हैं और इसके अल्प स्राव से वृद्धि अवरुद्ध हो जाती है जिसे पिट्यूटरी ड्वार्फिज्म (बौनापन या वामनता) कहते हैं। प्रोलैक्टिन हार्मोन स्तन ग्रंथियों की वृद्धि और उनमें दुग्ध निर्माण का नियंत्रण करता है। थाइरॉइड प्रेरक हार्मोन थाइरॉइड ग्रंथियों पर कार्य कर उनसे थाइरॉइड हार्मोन के संश्लेषण और स्त्राव को प्रेरित करता है। एड्रिनोकार्टिकोट्रॉफिक हार्मोन (ACTH) एड्रीनल वल्कुट पर कार्य करता है और इसे ग्लूकोकॉर्टिकॉइड्स नामक, स्टीरॉइड हार्मोन के संश्लेषण और स्रवण के लिए प्रेरित करता है। ल्यूटिनाइजिंग और पुटिका प्रेरक हार्मोन जननांगों की क्रिया को प्रेरित करते हैं और लिंगी हार्मोन का उत्पादन करते हैं अतः गोनेडोट्रोपिन कहलाते हैं। नरों में ल्यूटिनाइजिंग हार्मोन, एंड्रोजेन नामक हार्मोन के संश्लेषण और स्राव के लिए प्रेरित करता है। इसी तरह नरों में पुटिका प्रेरक हार्मोन और एंड्रोजेन शुक्रजनन को नियंत्रित करता है। मादाओं में ल्यूटिनाइजिंग हार्मोन पूर्ण विकसित पुटिकाओं (ग्राफियन पुटिका) से अंडोत्सर्ग को प्रेरित करता है और ग्राफियन पुटिका के बचे भाग से कॉपर्स ल्यूटियम बनाता है। पुटिका प्रेरक हार्मोन, मादाओं में अंडाशयी पुटिकाओं की वृद्धि और परिवर्धन को प्रेरित करता है l मेलानोसाइट प्रेरक हार्मोन, मेलानोसाइट्स (मेलानीन युक्त कोशिकाओं) पर क्रियाशील होता है तथा त्वचा की वर्णकता का नियमन करता है। ऑक्सीटॉसिन हमारे शरीर की चिकनी पेशियों पर कार्य करता है और उनके संकुचन को प्रेरित करता है। मादाओं में यह प्रसव के समय गर्भाशयी पेशियों के सकुचन और ग्रंथियों से दूध दुग्ध के स्राव को प्रेरित करता है। वसोप्रेसिन मुख्यतः वृक्क की दूरस्थ संवलित नलिका से जल एवं आयनों के पुनरावशोषण को प्रेरित करता है, जिससे मूत्र के साथ जल का हास (डाइयूरेसिस) कम हो। अतः इसे प्रतिमूत्रल हार्मोन या एंटी-डाइयूरेटिक हार्मोन (ADH) भी कहते हैं।

4.पिनियल ग्रंथि

पिनियल ग्रंथि अग,मस्तिष्क के पृष्ठीय (ऊपरी) भाग में स्थित होती है। पिनियल ग्रंथि मेलेटोनिन हार्मोन स्रावित करती है। मेलेटोनिन हमारे शरीर की दैनिक लय (24 घंटे) के नियमन का एक महत्वपूर्ण कार्य करता है। उदाहरण के लिए यह सोने-जागने के चक्र एवं शरीर के तापक्रम को नियंत्रित करता है। । इन सबके अतिरिक्त मेलेटोनिन उपापचय, वर्णकता, मासिक (आर्तव) चक्र प्रतिरक्षा क्षमता को भी प्रभावित करता है

5.थाइरॉइड ग्रंथि

थाइरॉइड ग्रंथि श्वास नली के दोनों ओर स्थित दो पालियोंसे बनी होती है (चित्र 22.3)। दोनों पालियाँ संयोजी ऊतक के पतली पल्लीनुमा इस्थमस से जुड़ी होती है। प्रत्येक थाइरॉइड ग्रंथि पुटकों और भरण ऊतकों की बनी होती हैं। प्रत्येक थाइरॉइड पुटक एक गुहा को घेरे पुटक कोशिकाओं से निर्मित होता है। ये पुटक कोशिकाएं दो हार्मोन, टेट्राआयडोथाइरोनीनस (T,) अथवा थायरोक्सीन तथा ट्राईआइडोथायरोनीन (T.) का संश्लेषण करती हैं। थाइरॉइड हार्मोन के सामान्य दर से संश्लेषण के लिए आयोडीन आवश्यक है। हमारे भोजन में आयोडीन की कमी से अवथाइरॉइडता एवं थाइरॉइड ग्रंथि की वृद्धि हो जाती है, जिसे साधारणतया गलगंड कहते हैं। गर्भावस्था के समय अवथाइरॉइडता के कारण गर्भ में विकसित हो रहे बालक की वृद्धि विकृत हो जाती है। इससे बच्चे की अवरोधित वृद्धि (क्रिटेनिज्म) या वामनता तथा मंदबुद्धि, त्वचा असामान्यता, मूक बधिरता आदि हो जाती हैं। वयस्क स्त्रियों में अवथाइराइडता मासिक चक्र को अनियमित कर देता है। थाइरॉइड ग्रंथि के कैंसर अथवा इसमें गाँठों की वृद्धि से थाइरॉइड हार्मोन के संश्लेषण की दर असामान्य रूप से अधिक जाती है। इस स्थिति को थाइरॉइड अतिक्रियता कहते हैं, जो शरीर की कार्यिकी पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है।

थाइरॉइड हार्मोन आधारीय उपापचयी दर के नियमन में मुख्य भूमिका निभाते हैं। ये हार्मोन लाल रक्त कणिकाओं के निर्माण की प्रक्रिया में भी सहायता करते हैं। थाइरॉइड हार्मोन कार्बोहाइड्रेट्, प्रोटीन और वसा के उपापचय (संश्लेषण और विखंडन) को भी नियंत्रित करते हैं। जल और विद्युत उपघट्यों का नियमन भी थाइरॉइड हार्मोन प्रभावित करते हैं। थाइरॉइड ग्रंथि से एक प्रोटीन हार्मोन, थाइरोकैल्सिटोनिन (TCT) का भी स्राव होता है जो रक्त में कैल्सियम स्तर को नियंत्रण करता है।

6.पैराथाइरॉइड ग्रंथि

मानव में चार पैराथाइरॉइड ग्रंथियाँ, थाइरॉइड ग्रंथि की पश्च सतह पर स्थित होती है। थाइरॉइड ग्रंथि की दो पालियों पर प्रत्येक में एक जोड़ी पैराथाइरॉइड ग्रंथियाँ पाई जाती हैं (चित्र 22.3बी), जो पैराथाइरॉइड हार्मोन (PTH ) नामक एक पेप्टाइड हार्मोन का स्राव करती हैं। पीटीएच का स्राव रक्त के साथ परिसंचारित कैल्सियम आयन के द्वारा नियमित होता है।

पैराथाइरॉइड हार्मोन रक्त में Ca2+ के स्तर को बढ़ाता है। पी टी एच अस्थियों पर कार्य कर अस्थि अवशोषण (विघटन/विखनिजन) प्रक्रम में सहायता करता है। पी टी एच वृक्क नलिकाओं से Ca2+ के पुनरावशोषण तथा पचित भोजन से Ca2+ के अवशोषण को भी प्रेरित करता है। अतः यह स्पष्ट है कि पी टी एच एक अतिकैल्सियम रक्तता हार्मोन (hypercalemic hormone) है, क्योंकि यह रक्त में Ca2+ स्तर को बढ़ाता है। यह थाइरोकैल्सिटोनिन के साथ मिलकर, यह शरीर में Ca2+ स्तर को बढ़ाता है। टी सी टी के साथ मिलकर, यह शरीर में Ca2+ का संतुलन बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

7.थाइमस ग्रंथि

थाइमस ग्रंथि महाधमनी के उदर पक्ष पर उरोस्थि के पीछे फेफड़ों के बीच स्थित एक पालीयुक्त संरचना है। थाइमस ग्रंथि प्रतिरक्षा तंत्र के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह ग्रंथि थाइमोसिन नामक पेप्टाइड हार्मोन का स्राव करती है। थाइमोसिन टी-लिंफोसाइट्स के विभेदीकरण में मुख्य भूमिका निभाते हैं जो कोशिका माध्य प्रतिरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है। इसके अतिरिक्त थाइमोसिन तरल प्रतिरक्षा (humoral immunity) के लिए प्रतिजैविक के उत्पादन को भी प्रेरित करते हैं। बढ़ती उम्र के साथ थाइमस का अपघटन होने लगता है, फलस्वरूप थाइमोसिन का उत्पादन घट जाता है। इसी के परिणामस्वरूप वृद्धों में प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया कमजोर पड़ जाती है।

अधिव्रिक ग्रंथि : हमारे शरीर में प्रत्येक वृक्क के अग्र भाग में एक स्थित एक जोड़ी अधिवृक्क ग्रंथिया होती हैं, (चित्र 22.4 अ)। ग्रंथियां दो प्रकार के ऊतकों से निर्मित होती हैं। ग्रंथि के बीच में स्थित ऊतक अधिवृक्क मध्यांश और बाहरी ओर स्थित ऊतक अधिवृक्क वल्कुट कहलाता है (चित्र 22.4बी)।

8. अधिवृक्क ग्रंथि

अधिवृक्क मध्यांश दो प्रकार के हार्मोन का स्राव करता है जिन्हें एड्रिनलीन या एपिनेफ्रीन और नॉरऍड्रिनलीन या नारएपिनेफ्रीन कहते हैं। इन्हें सम्मिलित रूप में कैटेकॉलमीनस कहते हैं। एड्रिनलीन और नॉरएड्रिनलीन किसी भी प्रकार के दबाव या आपातकालीन स्थिति में अधिकता में तेजी से साबित होते हैं, इसी कारण ये आपातकालीन हार्मोन या युद्ध हार्मोन या फ्लाइट हार्मोन कहलाते हैं। ये हार्मोन सक्रियता (तेजी), आँखों की पुतलियों के फैलाव, रोंगटे खड़े होना, पसीना आदि को बढ़ाते हैं। दोनों हार्मोन हृदय की धड़कन, हृदय संकुचन की क्षमता और श्वसन दर को बढ़ाते हैं। कैटेकोलएमीन, ग्लाइकोजन के विखंडन को भी प्रेरित करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप रक्त में ग्लूकोज का स्तर बढ जाता है। साथ ही ये लिपिड और प्रोटीन के विखंडन को भी प्रेरित करते हैं। अधिवृक्क वल्कुट को तीन परतों में विभाजित किया जा सकता है- जोना रेटिक्यूलेरिस (आंतरिक परत), जोना फेसिक्यूलेटा (मध्य परत) और जोना ग्लोमेरूलोसा (बाहरी परत ) । अधिवृक्क वल्कुट कई हार्मोन का स्राव करता है- जिन्हें सम्मिलित रूप से कोर्टिकोस्टीरॉइड हार्मोन या कोटिंकॉइड कहते हैं, जो कॉर्टिकोस्टीरॉइड कार्बोहाइड्रेट के उपापचय में संलग्न होते हैं ग्लूकोकार्टिकॉइड कहलाते हैं। हमारे शरीर में कॉर्टिसॉल मुख्य ग्लुकोकॉर्टिकॉइड है। जल और विद्युत अपघट्यों का संतुलन करने वाले कॉर्टिकोस्टीराइड, मिनरलोकॉर्टिकॉइड्स कहलाते हैं। हमारे शरीर में एल्डोस्टीरॉन मुख्य मिनरलोकॉर्टिकाइड है।

ग्लूकोकॉर्टिकोइड ग्लाइकोजन संश्लेषण, ग्लूकोनियोजिनेसिस, वसा अपघटन और प्रोटीन अपघटन को प्रेरित करते हैं तथा एमीनो अम्लों के कोशिकीय ग्रहण और उपयोग को अवरोधित करते हैं। कॉर्टिसॉल, हृदय संवहनी तंत्र के रखरखाव तथा वृक्क की क्रियाओं में भी संलग्न होता है। ग्लूकोकॉर्टिकोइड एवं विशेष रूप से कॉर्टिसाल प्रतिशोथ प्रतिक्रियाओं को प्रेरित करता है तथा प्रतिरक्षा तंत्र की प्रतिक्रिया को अवरोधित करता है। कॉर्टिसाल लाल रुधिर कणिकाओं के उत्पादन को प्रेरित करता है। एल्डोस्टीरॉन मुख्यतः वृक्क नलिकाओं पर कार्य करता है और Na+ एवं जल के पुनरावशोषण तथा K· व फॉस्फेट आयन के उत्सर्जन को प्रेरित करता है। इस प्रकार एल्डोस्टीरॉन, वैद्युत अपघट्यों, शरीर द्रव के आयतन, परासरणी दाब और रक्त दाब को बनाए रखने में सहायक होता है। एड्रीनल वल्कुट द्वारा कुछ मात्रा में एंड्रोजेनिक स्टीराइड का भी स्राव होता है जो यौवनारंभ के समय अक्षीय रोम, जघन रोम, तथा मुख (आनन) रोम की वृद्धि में भूमिका अदा करते हैं।”

9.अग्नाशय

अग्नाशय एक संयुक्त ग्रंथि है जो अंतःस्रावी और बहिःस्रावी दोनों के रूप में कार्य करती है (चित्र 22.1)। अंत:स्त्रावी अग्नाशय ‘लैंगरहँस द्वीपों’ से निर्मित होता है। साधारण मनुष्य के अग्नाशय में लगभग 10 से 20 लाख लैंगर हैंस द्वीप होते हैं जो अग्नाशयी ऊतकों का 1 से 2 प्रतिशत होता है। प्रत्येक लैंगर हैंस द्वीप में मुख्य रूप से दो प्रकार की कोशिकाएं होती हैं जिन्हें और 8 कोशिकाएं कहते हैं। कोशिकाएं का ग्लूकगॉन तथा कोशिकाएं इंसुलिन हार्मोन का स्राव करती हैं।

ग्लूकागॉन एक पेप्टाइड हार्मोन है जो सामान्य रक्त शर्करा स्तर के नियमन में मुख्य भूमिका निभाता है। ग्लूकागॉन मुख्य रूप से यकृत कोशिकाओं पर कार्य कर ग्लाइकोजेन अपघटन को प्रेरित करता है जिसके फलस्वरूप रक्त शर्करा का स्तर बढ़ जाता है। इसके अतिरिक्त पेट ग्लूकोनियोजिनेसिस की प्रक्रिया को भी प्रेरित करता है जिससे कि हाइपरग्लाइसिमिया (अति ग्लूकोज रक्तता) होती है। ग्लूकागॉन कोशिकीय शर्करा के अभिग्रहण और उपयोग को कम करता है। अतः ग्लूकोगॉन हाइपरग्लाइसिमिक हार्मोन है। इसुलिन भी एक प्रोटीन हार्मोन है जो ग्लूकोज समस्थापन के नियमन में मुख्य भूमिका निभाता है। इसुलिन मुख्यतः हिपेटोसाइट और एडीपोसाइट पर कार्य करता है और कोशिकीय ग्लूकोज अभिग्रहण और उपयोग को बढ़ाता है। इसके फलस्वरूप ग्लूकोज तीव्रता से रक्त हिपेटोसाइट और एडीपोसाइट में जाता है और तथा रक्त शर्करा का स्तर कम (हाइपोग्लासीमिया) हो जाता है। इंसुलिन लक्ष्य कोशिकाओं में ग्लूकोज से ग्लाइकोजेन बनने की प्रक्रिया को भी प्रेरित करता है। रक्त में ग्लूकोज समस्थापन का नियमन सम्मिलित रूप से दो हार्मोन इंसुलिन और ग्लूकागॉन द्वारा होता है।

लंबी अवधि तक हाइपरग्लाइसीमिया (अति ग्लूकोज रक्तता) होने पर डायबिटीज मेलीटस (मधुमेह) बीमारी हो जाती है जो मूत्र के साथ शर्करा का ह्रास और हानिकारक पदार्थों जैसे कीटोन बॉडीज के निर्माण से जुड़ी है। मधुमेह के मरीजों का इंसुलिन द्वारा सफलतापूर्वक उपचार किया जा सकता है।

10.वृषण

                    नर में उदर गुहा (पेडू) के बाहर वृषण कोष में एक जोड़ी वृषण स्थित होता हैं। (चित्र 22.1)। वृषण प्राथमिक लैंगिक अंग के साथ ही अंतःस्रावी ग्रंथि के रूप में भी कार्य करता है। वृषण शुक्रजनक नलिका और भरण या अंतराली ऊतक का बना होता है। लेइडिग कोशिकाएं या अंतराली कोशिकाएं अंतरनलिकीय स्थानों में उपस्थित होती हैं और एंड्रोजेन या नर हार्मोन तथा टेस्टोस्टेरॉन प्रमुख हार्मोन का स्राव करती हैं। एंड्रोजेन नर के

सहायक जनन अंगों जैसे कि एपीडिडाईमस, शुक्रवाहिका, सेमिनल वेसीकल, प्रोस्टेट ग्रंथि, यूरिथ्रा आदि के परिवर्धन, परिपक्वन और क्रियाओं का नियमन करते हैं। ये हार्मोन पेशीय वृद्धि, मुख और अक्षीय रोम की वृद्धि, क्रोधात्मकता, निम्न स्वरमान या आवाज इत्यादि को उत्तेजित करते हैं। एंड्रोजेन शुक्राणु निर्माण की प्रक्रिया में प्रेरक भूमिका निभाते हैं। एंड्रोजेन केंद्रीय तंत्रिका तंत्र पर कार्य कर नर लैंगिक व्यवहार (लिबिडो) को प्रभावित करता है। ये हार्मोन प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट उपापचय पर उपाचयी प्रभाव डालते हैं।

11.अंडाशय

                          मादाओं के उदर में अंडाशय का एक युग्म (जोड़ा) होता है (चित्र 22.1)। अंडाशय एक प्राथमिक मादा लैंगिक अंग है जो प्रत्येक मासिक चक्र में एक अंडे को उत्पादित करते हैं। इसके अतिरिक्त अंडाशय दो प्रकार के स्टीरॉइड हार्मोन समूहों का भी उत्पादन करते हैं, जिन्हें एस्ट्रोजेन और प्रोजेस्टेरॉन कहते हैं। अंडाशय अंडपुटक और भरण ऊतक का बना होता है। एस्ट्रोजेन का संश्लेषण एवं स्राव प्रमुख रूप से परिवर्धित हो रहे अंडाशयी पुटकों द्वारा होता है। अंडोत्सर्ग के पश्चात विखंडित पुटिका, कॉर्पसल्यूटियम में बदल जाता है जो कि मुख्यतया प्रोजेस्टेरॉन हार्मोन का स्राव करता है।

एस्ट्रोजेन स्त्रियों में द्वितीयक लैंगिक अंगों की वृद्धि तथा क्रियाओं का प्रेरण, अंडाशयी पुटिकाओं का परिवर्धन, द्वितीयक लैंगिक लक्षणों का प्रकटन (जैसे उच्च आवाज की स्वरमान) स्तन ग्रंथियों का परिवर्धन इत्यादि अनेक क्रियाएं करते हैं। एस्ट्रोजेन स्त्रियों के लैंगिक व्यवहार का नियामक भी है।

प्रोजेस्टेरॉन प्रसवता में सहायक होते हैं। प्रोजेस्टेरॉन दुग्ध ग्रंथियों पर भी कार्य कर के दुग्ध संग्रह कूपिकाओं के निर्माण और दुग्ध के स्राव में सहायता करते हैं l

12.हृदय, वृक्क और जठर आंत्रीय पथ के हार्मोन :

अब तक आप अंत:स्रावी ग्रंथियों और उनके हार्मोन के बारे में समझ चुके होंगे। यद्यपि है पहले इंगित किया जा चुका है कि हार्मोन का स्राव कुछ अन्य अंगों द्वारा भी होता है जो अंत:स्त्रावी ग्रंथियां नहीं हैं। उदाहरण के लिए हृदय की अलिंद भित्ति द्वारा एक पेप्टाईड हार्मोन का स्त्राव होता है, जिसे एट्रियल नेट्रियुरेटिक कारक (एएनएफ) कहते हैं। यह रक्त दाब को कम करता है। जब रक्त दाब बढ़ जाता है, तो एएनएफ के स्राव और इसकी क्रिया के फलस्वरूप रक्त वाहिकाएं विस्फारित हो जाती हैं तथा रक्त दाब कम हो जाता है।

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