1.रुधिर के कणीय अवयव क्या हैं ?
ANSWERE ;-रुधिर के कणीय अवयव निम्नलिखित हैं-
(a) लाल रक्त कणिकायें (R.B.C)
(b) श्वेत रक्त कणिकायें (W.B.C)
(c) रक्त प्लेटलेट्स (Blood platelets) श्वेत रक्त कणिकाओं को पुनः दो प्रकारों अकणिकामय श्वेत रक्त कणिकायें (मोनोसाइड एवं लिम्फोसाइट) तथा कणिकामय श्वेत रक्त कणिकायें (बेसोफिल, इयोसिनोफिल एवं न्यूट्रोफिल) में विभेदित किया जाता है ।
2. उपास्थि अणु क्या है ?
Answer:-
उपास्थि अणु (Chondrocytes) – उपास्थि (Carti- lage) के मैट्रिक्स (matrix) में उपस्थित कोशिकाओं को कॉन्ड्रोसाइटस कहा जाता है। ये गर्तिकाओं (lacunae) में पायी जाती है। प्रत्येक गर्तिका में एक-दो या चार कॉन्ड्रोसाइट्स उपस्थित होते हैं। कॉन्ड्रोसाइट्स की संख्या में वृद्धि होने से उपास्थि में वृद्धि होती है। कॉन्ड्रोसाइट्स द्वारा ही उपास्थि का मैट्रिक्स स्रावित होता है। यह कॉन्ड्रिन नामक प्रोटीन का बना होता है।
3. पक्षमाभीः उपकला उत्तक किसे कहते हैं ?
Answer:–
संरचनात्मक लक्षण में ये स्तम्भाकार उपकला ऊतक की तरह ही होता है लेकिन इसकी पहचान कोशिकाओं के स्वतंत्र सिरों पर छोटी-छोटी महीन धागों के समान जीवद्रव्यीय रचनाओं की उपस्थिति से होती है जो कि पक्ष्माभिका (Cilia) के नाम से जानी जाती है। प्रत्येक पक्ष्माभिका प्लाज्मा झिल्ली के नीचे स्थित घुण्डी जैसी आधारीय कण (Basal granule) से निकलती है। इनका केन्द्रक कोशिकाद्रव्य के मध्य में पाया जाता है। ये ऊतक श्वासनली (Trachea) अण्डवाहिनी (Oviduct), मूत्रवाहिनी (Ureter), टिम्पैनिक गुहा, मस्तिष्क तथा मेरूरज्जु की केन्द्रीय नाल तथा श्लेष्मा कला के भीतरी सतह पर पाये जाते हैं। ये ऊतक अपने पक्ष्माभिकों की सहायता से श्लेष्मा तथा अन्य तरल पदार्थों में गति पैदा करके उन्हें आगे की ओर बढ़ाने में मदद करते हैं।
4. मिसोसोम क्या है ? मिसोसोम के कार्य ।
Answer:-
प्रोकैरियोटिक कोशिका में कोशिका झिल्ली के अन्तर्वलन। के कारण बनने वाले कुंडलित थैलीनुमा रचना को मीसोसोम कहते हैं। यह कोशिका भित्ति के निर्माण, DNA द्विगुणन तथा कोशिका विभाजन में सहायक होता। है। चूँकि प्लाज्मा झिल्ली में श्वसनीय एन्जाइम पाए जाते हैं, इसलिए मीसोसोम माइटोकॉन्ड्रिया के समतुल्य कार्य करता है। यह स्त्रावण की क्रिया के संपादन में भी सहायक होता है ।
5. केंद्रक छिद्र क्या है? इसके कार्यों को समझाइए?
Answer:-
केन्द्रक को सभी तरफ ओर से परिसीमित करने वाली दोहरी झिल्ली की प्रकृति वाली आवरण होता है जिसे केन्द्रक कला कहते हैं। यह 100Å से 500A मोटाई वाली होती है। दोनों झिल्ली के मध्य स्थित स्थान (Space) की परिकेन्द्रीय स्थल (Perinuclear Space) कहते हैं । केन्द्रक कला में यत्र-तत्र अनेक गोलाकार छिद्र पाये जाते हैं जिसे केन्द्रकीय छिद्र (Nuclear Pore) कहते हैं । कार्य – केन्द्रक में न्यूक्लियोलस की क्रियाशीलता से निर्मित होने वाले विभिन्न प्रकार के R.N.A. अणु विशेषकर M-RNA केन्द्रक कला छिद्रों से होकर कोशिका द्रव्य में पहुँचते हैं तथा प्रोटीन संश्लेषण की प्रक्रिया में भाग लेते हैं।
6. गुणशुत्र क्या है ?
Answer :-
गुणसूत्र किसी भी जीवित कोशिका में पाए जाने वाले वे र विशिष्ट रचना होते हैं, जो आनुवंशिक इकाई अर्थात् जीनों को धारण करते हैं तथा एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में लक्षणों के संचरण को निर्धारित करते हैं साथ ही साथ अपने निश्चित स्वरूप तथा क्रियाशीलता को पीढ़ी दर पीढ़ी बनाये रखते हैं। प्रोकैरियोटिक कोशिका में यह नग्न DNA श्रृंखला के रूप में होते हैं, जबकि यूकैरियोटिक (Eukaryotic) कोशिका के केन्द्रक के केन्द्रकीय द्रव्य में क्रोमैटिन जाल के रूप में पाये जाते हैं। क्रोमैटिन रासायनिक दृष्टि से एक प्रकार का न्यूक्लियोप्रोटीन (Nucleoprotein) होता है, जो न्यूक्लिक अम्ल तथा प्रोटीन के मिलने से बनता है। प्रोटीन विशेष रूप से हिस्टोन (Histone) होते हैं, जो क्षारीय अमीनों अम्लों से बनता है। यही क्रोमैटिन कोशिका विभाजन के समय संघनन (Condensation) पश्चात् गुणसूत्र (Chromosome) के रूप में परिलक्षित होते हैं। गुणसूत्र में मुख्य भाग DNA ही होता है, जो कि व्यवस्थित होकर हिस्टोन (Histone) प्रोटीन के साथ गुणसूत्र का निर्माण करते हैं। DNA के साथ हिस्टोन प्रोटीन का संघटक के रूप में होना यूकैरियोटिक गुणसूत्र तथा हिस्टोन प्रोटीन रहित DNA का होना प्रोकैरियोटिक DNA की पुष्टि करता है।