कांग्रेस और दलित विरोधी छवि: ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य और वर्तमान परिदृश्य
कांग्रेस पार्टी, जो भारत की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी है, ने आज़ादी से पहले और बाद में कई ऐतिहासिक कदम उठाए। इसके बावजूद, कांग्रेस पर समय-समय पर दलित विरोधी होने के आरोप लगाए गए हैं। यह महत्वपूर्ण है कि हम इस मुद्दे को समझने के लिए ऐतिहासिक और वर्तमान संदर्भ दोनों को ध्यान में रखें।
कांग्रेस और दलित नेतृत्व का इतिहास
कांग्रेस की स्थापना 1885 में हुई थी और इस पार्टी ने लंबे समय तक भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व किया। हालांकि, दलित समाज के प्रमुख नेता डॉ. भीमराव अंबेडकर का कांग्रेस से वैचारिक मतभेद रहा। अंबेडकर का मानना था कि कांग्रेस में दलितों के प्रति समर्पित विचारधारा की कमी है और इसलिए उन्होंने स्वतंत्र रूप से दलित समाज के अधिकारों के लिए संघर्ष किया।
अंबेडकर और महात्मा गांधी के बीच हुए पूना समझौते ने यह दिखाया कि कांग्रेस और दलितों के बीच गहरे मतभेद मौजूद थे। कांग्रेस ने अंबेडकर के कई प्रस्तावों का विरोध किया, खासकर जो दलित समाज के लिए आरक्षण और अलग निर्वाचन मंडल के बारे में थे। इसके चलते अंबेडकर को महसूस हुआ कि कांग्रेस का दृष्टिकोण दलितों के प्रति उतना समावेशी नहीं है जितना कि होना चाहिए।
दलित विरोधी होने के आरोप: मुख्य कारण
- पार्टी के भीतर नेतृत्व का अभाव
कांग्रेस के दलित विरोधी होने के आरोपों का एक बड़ा कारण यह है कि पार्टी ने अपने संगठन में दलित नेताओं को प्रमुख भूमिकाएं देने में बहुत धीमी गति से काम किया। हालांकि दलित नेताओं का एक हिस्सा कांग्रेस में सक्रिय रहा है, पार्टी पर अक्सर यह आरोप लगता रहा है कि वह दलित नेतृत्व को बराबर की जगह नहीं देती है। - नीतिगत विफलताएँ
कांग्रेस सरकारों के कार्यकाल में कई नीतियां दलितों के उत्थान के लिए लागू की गईं, लेकिन दलित समाज का एक बड़ा वर्ग महसूस करता है कि ये नीतियां प्रभावी ढंग से लागू नहीं की गईं। भूमि सुधार, शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र में कांग्रेस की नीतियों को पर्याप्त नहीं माना गया है। - मध्यवर्गीय दृष्टिकोण
कांग्रेस पर आरोप है कि उसने समाज के ऊपरी और मध्यम वर्ग के हितों को प्राथमिकता दी और दलितों की समस्याओं को गंभीरता से नहीं लिया। पार्टी की नीतियां कभी-कभी उच्च वर्गों के प्रभाव में बनाई गईं, जिससे दलित समाज खुद को हाशिए पर पाता रहा।
कांग्रेस का दलित समाज के प्रति दृष्टिकोण: वर्तमान परिदृश्य
हाल के वर्षों में कांग्रेस ने अपनी दलित विरोधी छवि को बदलने के कई प्रयास किए हैं। राहुल गांधी ने पार्टी के नेतृत्व के तहत दलित समुदाय के साथ संवाद बढ़ाने और उनकी समस्याओं को हल करने की कोशिश की है। दलित मुद्दों पर संसद में कांग्रेस की मुखरता बढ़ी है, और पार्टी ने विभिन्न राज्यों में दलित समुदाय के समर्थन को फिर से हासिल करने के प्रयास किए हैं।
पार्टी ने दलित समाज के नेताओं को आगे लाने के प्रयास किए हैं, जैसे कि उत्तर प्रदेश में दलितों के लिए विशेष योजनाओं की घोषणा। इसके अलावा, कांग्रेस ने उन राज्यों में दलित मतदाताओं को लक्षित करने के लिए विशेष कार्यक्रम चलाए हैं जहाँ दलित मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते हैं।
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निष्कर्ष
कांग्रेस पार्टी के ऊपर दलित विरोधी होने के आरोप कई दशकों से लगते आए हैं। हालांकि पार्टी ने समय-समय पर इन आरोपों का खंडन करते हुए दलित समाज के लिए नीतिगत पहल की हैं, लेकिन यह भी स्पष्ट है कि दलित समुदाय के बीच कांग्रेस की छवि हमेशा सकारात्मक नहीं रही है। पार्टी को इस छवि को सुधारने के लिए गंभीर प्रयास करने होंगे, खासकर जब भारतीय राजनीति में दलित मतदाताओं की भूमिका और भी महत्वपूर्ण होती जा रही है।
कांग्रेस के लिए यह आवश्यक है कि वह दलित नेतृत्व को अधिक जगह दे और उनकी समस्याओं को प्राथमिकता के साथ हल करे ताकि इस आरोप से वह उबर सके और एक समावेशी पार्टी के रूप में अपनी छवि बना सके।